
श्री शनि चालीसा
Shri Shani Chalisa
Shri Shani Dev
॥दोहा॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
करहु सुभारम्भ अब करी, शनि चालीसा गान॥
॥चौपाई॥
जै जै श्री शनिदेव दयाला।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा तिरूप ऐसे।
सिंह वाहन शोभित जैसे॥
श्याम वर्ण शरीर सुहावन।
नील वस्त्र पहिरे छबि छावन॥
लोहे का दण्ड हाथ में धारे।
सूर्य पुत्र कष्ट निवारे॥
सिर पर छत्र सुशोभित सोहे।
मस्तक पर कलगी मन मोहे॥
दास तुम्हारा कष्ट निवारो।
संकट से सदा उबारो॥
कोप न करना शनि महाराज।
दे दर्शन बड़भागी आज॥
राहु केतु से रक्षा करना।
संकट से सदा उबारना॥
माता छाया रूप सुहावन।
सूर्य पत्नी शील गुण भावन॥
पिता सूर्य छवि धरते सुन्दर।
दोनों को तुम करते मन्दर॥
नवग्रह में सबसे भारी।
सबकी नैया करते पारी॥
सिंगापुर में मंदिर तेरा।
जहाँ करते भक्त घनेरा॥
तेल उड़द का प्रीत तुम्हारे।
शीघ्र प्रसन्न होते निहारे॥
शनि त्रयोदशी जो आवे।
श्रद्धा भक्ति जो गुण गावे॥
दरिद्रता जो जल्दी भागे।
दुख दलिद्र सब दूर भागे॥
राज दरबार में जो जावे।
कहे सुनी मान जो पावे॥
सर्प दंश महरोग नसावे।
जो जनि शनि स्तुति गुण गावे॥
कालसर्प का भी हर्ता।
शनि महाराज भक्त पर मर्ता॥
आर्थिक संकट हर लेता।
जो जन शनि स्तुति कर देता॥
बैरी दुश्मन का क्षय होता।
जो जन शनि स्तुति नित जोता॥
न्याय अन्याय का भेद बताते।
पापियों को दण्ड दिलाते॥
शुभ अशुभ का फल जो देते।
नीच उच्च सब को समझेते॥
जो शनि से कर लेता यारी।
बिपदा टले हानि सब भारी॥
अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता।
श्रम का फल देने वाला॥
हाथ जोड़ विनती करता हूं।
संकट से बचने की मरता हूं॥
जो भी मांगे श्रद्धा से।
वो फल पाता भक्ति रसे॥
धन दौलत संपत्ति बढ़ाते।
घर परिवार में खुशी लाते॥
बारह नाम शनि के न्यारे।
जो जन कहते अंतकारे॥
शनैश्चर पिंगल बभ्रु च।
कृष्ण रौद्र यम सूर्यपुत्र॥
आसिता काल तमिस्र शनि।
ये बारह नाम शुभ जानि॥
जो शनि देव को पूजता है।
दुखों से वो छूटता है॥
शनि चालीसा जो कोई गावे।
सुख संपत्ति घर में आवे॥
नित नेम कर प्रातः काल।
शनि पूजा कर परे विकराल॥
तेल तिल अर्पण इत करि।
शनि चालीसा पाठ उधारि॥
प्रदक्षिणा कर साष्टांग।
शनि महाराज सुने अनुरंग॥
चालीसा शनि की जो गावे।
हर संकट से छुट जावे॥
नित्य प्रति जो ध्यान धरावे।
वो कष्टों से बच जावे॥
॥दोहा॥
शनि महाराज की अरज, सुनिए सदा सुजान।
रखिये सदा हमें प्रभु, चरणन में कल्यान॥
🙏॥ जय श्री राम ॥🙏